Yato yatah samihse tato no abhayam kuru sha nah kuru prajabhyo bhayam naha pashubhya
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरू।
शं नः कुरू प्रजायोऽभयं नः पशुभयः।
अमृताभिषेकोस्तु शांति शांतिः सुशांतिर्भवतु ।।

भावार्थ यह है ! हे परमेश्वर! आप इस धरा पर जो भी रचना करते हैं , उन स्थानों जीवों पशुओं से हमें भय रहित करिए, अर्थात् किसी स्थान से हमें कोई भी भय न हो, वैसे ही सब दिशाओं में जो आपकी प्रजा और पशु हैं, उनसे भी हमको भयरहित करें तथा हमसे उनको सुख हो, और उनको भी हम से भय न हो ! ॐ शांति शांति शांतिः सब जनों को शांति प्राप्त हो !
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